आज हम कोहिनूर हीरा के इतिहास पर नजर डालेगे कि यह हीरा भारत के गोलकुण्डा से निकल कर कहां कहाँ गया यह विभिन्न सम्राटो के हाथो में हस्तातरित होता रहा। तथा भारत के बाहर जा कर फिर से भारत में आया लेकिन अब यह कहाँ और किस स्थिति में है। चलिये जानते हैं।
इसका उल्लेख सर्वप्रथम बाबरनामा में मिलता है। इसको आन्ध्रप्रदेश स्थित गुटरु जिले की कोलार खान से खोजा गया था। जिसके बाद यह विभिन्न राजाओ, महाराजाओ एवं शासको के हाथ में हस्तातरित होता रहा।
बाबरनामा मे उल्लेख मिलता है। की 1294ई0 में कोहिनूर हीरा ग्वालियर के सम्राट के पास था तथा सन् 1310ई0 में खिलजी वंश शासक अलाउद्दीन खिलजी के द्वारा दक्षिण भारत अभियान पर भेजे गये अपने सिपेसालार मलिक काफूर द्वारा काकतीय वंश की राजधानी वांरगल पर हमला कर काेहिनूर को लूट ले गया।
इस प्रकार कोहिनूर दिल्ली सल्तनत के पास आ गया। इसी प्रकार यह सल्तनत में विभिन्न शासको से होता हुआ। मुगलो के हाथ में चला गया।हिमायु के सस्मण में इसका उल्लेख मिलत है।
मुगल बादशाह शाहजहाँ ने इसे मयूर सिंहासन( तख्ते ताउत) में लगवाया था। इसके बाद औरगजेब के काल में इसको काटा गया। तथा इसे बहुत हल्का कर दिया गया। मुगल बादशाह मुहम्मद शाह के काल में 1739 ई0 में ईरानी आक्रमण कारी नादिरशाह ने दिल्ली पर आक्रमण कर दिया तथा वह तख्ते ताउत के साथ इसे भी साथ में ले गया।
नादिरशाह की मृत्यु के उपरान्त इस पर अफगानिस्तान के शासक अहमदशाह अब्दाली का कब्जा हो गया। तथा कुछ समय उपरान्त अहमदशाह अब्दाली की मृत्यु के उपरान्त उसके पुत्र शाहशुजा को यह प्राप्त हुआ।
लगभग सन् 1809 ई0 के आसपास कोहिनूर हीरा अफगानिस्तान के शासक शाहशुजा ने महाराजा रणजीत सिंह को भेंट कर दिया इस प्रकार यह पुनः भारत में आ गया। इसके उपरान्त सन् 1849ई0 में गुजरात के युध्द में अंग्रेजो से पराजित होकर दिलीप सिंह ने यह हीरा अंग्रेजो के तत्कालीन गर्वनर जनरल लाँर्ड डलहौजी को भेंट कर दिया तथा लार्ड डलहोजी द्वारा इसे ब्रिटेन की महारानी को भेंट कर दिया।
तब से भारत का कोहिनूर ब्रिटेन के पास है। जिसके वर्तमान में तीन टुकड़े में विभाजित कर दिया गया है। इसका पहला टुकड़ा ब्रिटिश म्यूजियम (संग्रहालय) में तथा दूसरा व तीसरा टुकड़ा ब्रिटेन की महारानी के राज मुकुट मे सुशोभित है।
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